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ग्वालियर: बच्चों को दें सकारात्मक सोचने की प्रेरणा: राजयोगिनी उषा दीदी

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मनुष्य के भीतर जब सकारात्मक सोचने का संस्कार निर्मित हो जाता है तो व्यक्ति के जीवन में खुशियां आने लगती है, इसलिए माता-पिता को बचपन से ही बच्चों में प्रेरक कहानियां के माध्यम से सकारात्मक सोच को संस्कारों में डालने का प्रयत्न करना चाहिए” यह विचार ब्रह्माकुमारी के अंतरराष्ट्रीय केंद्र माउंट आबू से पधारी अंतरराष्ट्रीय प्रेरकवक्ता राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी उषा दीदी ने चेंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में सकारात्मक परिवर्तन का वर्ष थीम पर आयोजित कार्यक्रम में सकारात्मक चिंतन से सकारात्मक परिवर्तन विषय पर आयोजित कार्यक्रम मैं बुधवार को व्यक्त किए। राजयोगिनी उषा बहन ने कहा कि आमतौर पर लोग खुद को बदलने से ज्यादा दूसरों को बदलने पर ज्यादा ध्यान रखते हैं करते हैं। परन्तु दूसरों को बदलने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है क्योंकि हरेक अपने अनुसार जीने के अधिकार है । हम दूसरों को अपने अनुसार नहीं ढाल सकते। जब हमारा स्वयं का परिवर्तन हो जाएगा तो बहुत कुछ बदल जाएगा । गीता सार भी यही है कि जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है अच्छा हो रहा है , और जो होगा वह भी अच्छा होगा, इसलिए दूसरों की चिंता छोड़कर अपने भीतर परिवर्तन आरंभ करें तो जीवन में सकारात्मक परिवर्तन दिखने लगेगा और अच्छाई ही नजर आने लगेगी । इसके लिए हम अपनी मन वचन और कर्म को बदलें ।
उन्होंने कहा कि हम अपने वार्तालाप के दौरान किन शब्दों का चयन करते हैं हमें अपने शब्दों की गुणवत्ता जांचनी होगी, हमारे शब्द किसी को घाव दे रहे हैं या सुकून। हमारे शरीर का सबसे बड़ा और सबसे अच्छा अंग हमारी जीभ ही है जब वह सकारात्मक बोलती है तो हमारे लिए दुआएं निकलती हैं।
हरेक के साथ साथ अपनी पत्नी की भी प्रशंसा करना सीखें….. उन्होंने कहा कि हमें अपने पारिवारिक सदस्यों के काम की प्रशंसा समय-समय पर करते रहना चाहिए। घर में यदि आप पत्नी के काम की प्रशंसा करेंगे तो इससे घर में एक सकारात्मक वातावरण बनेगा और रिश्तों को मजबूती मिलेगी। पति-पत्नी गाड़ी के दो पहिए होते हैं जो साथ चलते हैं तो जिंदगी की गाड़ी दौडऩे लगते हैं और जीवन सुंदर बन जाता है । एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपने गृहस्थ जीवन को अच्छा बनाएं । जीवन के अंदर सकारात्मक परिवर्तन के लिए सदैव प्रयत्न करते रहें। हमारे बुरे कर्मो का कोई भागीदार नहीं होता इसलिए सदैव सत्कर्म करें। माता-पिता बच्चों को जन्म तो दे सकते हैं पर भाग्य नहीं बदल सकते। भाग्य तो कर्म से ही बनता है। अपने कर्मो का खाता इतना अच्छा बनाएं कि दूसरों को भी प्रेरणा मिल सके। अपनी सोच वाणी और कर्म से आप जीवन को सुंदर बना सकते हैं।
ग्वालियर केंद्र की प्रभारी आदर्श दीदी ने इस मौके पर सभी को ध्यान कराया। नन्ही नव्या ने स्वागत में सुंदर नृत्य की प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया। इस मौके पर रघु भाई, प्रहलाद भाइ, आरके मिश्रा जी, डॉ गुरुचरन सिंह, चेंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव दीपक अग्रवाल इत्यादि सहित शहर के अनेक गण नागरिक और शहरवासी मौजूद रहे।
अहंकार व भय ने मुस्कराहट छीनी…. शाम के सत्र का भी शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
शाम के सत्र में खुशियों को अवसर दो विषय पर बोलते हुए राजयोगिनी बीके उषा दीदी ने कहा कि अहंकार और भय की वजह से मुस्कराहट दूर होती चली जाती है। आजकल छोटे बच्चों का भी अपना ईगो है अगर उनका कहना न मानो तो उनका गुस्सा फूट पड़ता है, ऐसे बच्चों ने मां-बाप की नाक में दम करके रख दिया है। हर किसी के जीवन मेें कोई न कोई भय जरूर है। हर इंसान भय में जी रहा है। हालात यह है कि लोग घर में बिना वजह मुस्कारा नहीं पा रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें बगीचे में जाकर हंसना पड़ता है। -मुस्कराने के लिए वजह मत ढूंढों, क्योंकि छह माह का नन्हा बालक जब मुस्कराता है तो वह पूरे घर में खुशी ला देता है और वातावरण को तनाव मुक्त कर देता है,लेकिन वही बालक जब बड़ा होता है तो उसके जीवन में इतना तनाव, भय और अहंकार भर जाता है कि वह मुस्कराना भूल जाता है। फिर मुस्कराना तो छोड़ो उसके जीवन से खुशी चली जाती है।
-एक मुस्कराहट से शरीर की 48 मसल्स रिलेक्स हो जाती हैं और यदि हम क्रोध करते हैं तो मसल्स में तनाव आ जाता है। -खुशी में रहना हमारी नेचुरल स्टेज है, लेकिन बड़े होकर हम इतने समझदार हो जाते हैं कि खुशी भूल जाते हैं। -जीवन में पुन: मुस्कराना सीख लें, तो आप न सिर्फ प्रसन्नचित्त बल्कि स्वस्थ भी रहेंगे। ,…..
दोनों ही कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। जिसमें
भाजपा के प्रदेश कार्यसमिति समस्त सदस्य आशीष प्रताप सिंह, चेम्बर ऑफ कॉमर्स, सचिव दीपक अग्रवाल, डॉ राहुल सप्रा पूर्व अध्यक्ष आई एम ए ग्वालियर, रोटरी क्लब से जान्हवी रोहिरा, पूर्व अधीक्षक एवं सयुंक्त संचालक जे ए शासकीय अस्पताल डॉ अशोक मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. केशव पांडेय, के एस नर्डॉसिंग कॉलेज के निदेशक डॉ ए एस तोमर, समाज सेवी श्रीमती प्रिया तोमर, अजय अरोरा, ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के अंत में ग्वालियर महापौर श्रीमती डॉ शोभा सिंह सिकरवार, दाल बाजार व्यापार समिति, कॉन्फिडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स के पदाधिकारी, रोटरी सेंट्रल,जे सी आई , आरोग्य भारती सहित अनेकानेक संगठनों ने दीदी जी को स्मृति चिन्ह भेंट कर शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
इसके साथ ही कार्यक्रम में वरिष्ठ समाज सेवी राधाकिशन खेतान, व्यवसायी अभय खंडेलवाल, प्रशांत गुप्ता , प्रदीप शर्मा सहित सैकड़ों की संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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मालनपुर ग्वालियर – ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

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ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

तीन दिवसीय रिट्रीट में प्रदेश भर से आई युवा बहनों ने सीखे व्यक्तितव विकास गुर

दुआएं लेना और दुआएं देना अर्थात जीवन को सुंदर बनाना – अनुसूईया दीदी

ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान में आना अर्थात आनंद की अनुभूति करना -आशीष प्रताप सिंह

बिना कहे जब हम काम करते हैं तो दुआएं मिलती हैं – रेखा दीदी

ग्वालियर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्था राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग द्वारा नई उमंग नई तरंग के अंतर्गत गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर में तीन दिवसीय आवासीय रिट्रीट डिवाइन यूथ फोरम का आयोजन किया गया था। जिसमे पूरे प्रदेश से युवा बहनों ने हिस्सा लिया। इस रिट्रीट का उद्देश्य व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देना था।
आज कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़, दिल्ली से पधारी बीके अनुसूईया दीदी, बीके वर्णिका दीदी, सीधी से रेखा दीदी, ग्वालियर गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर प्रमुख बीके ज्योति बहन, युवा प्रभाग के राष्ट्रीय सदस्य बीके प्रहलाद भाई, बीके जानकी आदि उपस्थित थीं।

कार्यक्रम के शुभारंभ ने दिल्ली से आई बीके अनुसूईया दीदी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दुवाओं के वारे में सभी को बताया और कहा कि दुआएं यह कोई खरीदी-बेची जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि हमारे कर्मों की खामोश कमाई होती हैं। जब हम निस्वार्थ भाव से, श्रद्धा और सेवा-भाव से कार्य करते हैं, तो दुआएं स्वतः ही हमारे खाते में जमा होती जाती हैं।
दुआएं कमाने का मार्ग कर्म से होकर जाता है। जब हम अपने कर्मों से अपने बड़ों, गुरुजनों और समाज को निश्चिंत करते हैं। जब हम बिना कहे उनके सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं, तो वह आशीर्वाद नहीं, बल्कि दिल से दुआएं भी देते हैं। यह दुआएं हमारी रक्षा करती हैं, मार्ग प्रशस्त करती हैं, और जीवन को सार्थक बनाती हैं।
दीदी ने आगे कहा कि हम जिनको लोगो के साथ रहते है या जहां कार्य करते है। या फिर कोई सेवा का कार्य करते है। वह हमें अपना समझ करके और बिना कहे करना चाहिए यह सबसे ऊँचा कर्म है। जो काम किसी ने कहा नहीं, पर हमने देख लिया और कर दिया। वही असली सेवा है। सेवा में दिखावा नहीं, समर्पण होना चाहिए। जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए कार्य करते हैं, तो हमें दुआओं की पूंजी मिलती है। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि “यह मेरा काम नहीं है।” कर्म का धर्म यही कहता है कि जहां ज़रूरत हो, वहां सहयोग दिया जाए। यही सहयोग एक दिन हमारी ज़रूरत के समय कई गुना होकर लौटता है।
यूथ विंग की भोपाल ज़ोन की संयोजिका बीके रेखा बहन ने कहा कि जितनी ज़रूरत हो, उतना ही लेना सीखें। आज की दुनिया में लालच हर किसी को खींचता है, पर संतोष और संयम ही वह गुण है जो दूसरों के हिस्से की चीज़ें भी उन्हें लौटाकर हमें दुआएं दिलवाता है। सीमित संसाधनों में संतुलन बनाना, यही सच्चे संस्कारों का परिचायक है।


कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़ ने बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समष्टि के प्रति एकात्मता, सर्वभूत हितेरेता:
एवं सर्वे भवंतु सुखिनः जैसे उच्च स्तरीय मूल्यों के उपासक होने पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के भाइयों बहनों ने हम सब को गौरवान्वित किया हैं। हमारे जो गुरुजन होते हैं उनकी शिक्षा से ही हमारा विकास होता हैं
जिस प्रकार हमारा देश आगे बढ़ रहा हैं। और आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बड़ी हैं।
मैं पिछले कुछ वर्षो से ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुड़ा हुआ हूँ। और मुझे यहां आकर के आनंद की अनुभूति होती हैं।
आज की पीढ़ी अपने नेचर को भूलती जा रही हैं
यह संस्था सभी लोगों को नेचर और सांस्कृतिक से जोड़ती हैं।
कार्यक्रम में दिल्ली से आई बीके वर्णिका बहन ने कहा कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना ही दुआओं की कुंजी है। जब हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सभी के भले की कामना करते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि से हमें सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
बचपन से ही हमें ऐसे मूल्य और सोच अपनाने चाहिए कि जहाँ भी हम जाएँ, वहाँ शांति, सहयोग, और करुणा का संचार हो। यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है। दुआएं सिर्फ शब्दों से नहीं, व्यवहार से दी जाती हैं। प्रेरणा देकर, मार्गदर्शन देकर।


गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर की प्रभारी बीके ज्योति दीदी ने भी अपनी शुभकामनाएं दीं और कहा कि जिस दिन हमारे अंदर संतोष धन आ जाता हैं फिर बाहर का कोई भी आकर्षण महसूस नहीं होता हैं।
अपने लिए जिए तो क्या जिए, जीवन में दूसरों का भला ही असली जीवन है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके प्रहलाद भाई ने किया तथा सभी का आभार बीना से पधारी बीके जानकी दीदी ने किया।
इस अवसर पर नीलम बहन, रेखा बहन, खुशबू बहन, महेश भाई, आशीष भाई, मीरा बहन, अर्चना बहन, सपना बहन सहित अनेकानेक बहने उपस्थित थीं

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न्यूज़ कवरेज – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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मालनपुर ग्वालियर – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है – बीके वर्णिका बहन

यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा – बी के अनुसुईया दीदी

ग्वालियर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के माधवगंज स्थित प्रभु उपहार भवन में दिल्ली से आई बीके अनुसुईया दीदी एवं वर्णिका बहन का स्वागत अभिनन्दन किया गया।


इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ लश्कर केंद्र प्रमुख बीके आदर्श दीदी ने शब्दों से एवं पुष्पगुच्छों से पधारे हुए अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन किया। और कहा कि मानव जीवन बहुत ही अनमोल हैं इसकी हमें हमेशा वैल्यू करनी चाहिए। और हमेशा श्रेष्ठ कर्म ही करना चाहिए। आज हमारे बीच अनुसुईया दीदी पहुंची है जो कि पिछले 60 वर्षों एवं वर्णिका बहन पिछले 11 वर्षों से ब्रह्माकुमारीज संस्थान में प्रेरक वक्ता एवं राजयोग ध्यान प्रशिक्षका के रूप में समर्पित होकर अपनी सेवाएँ दें रही है। और आपके माध्यम से हजारों, लाखों लोगो को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिल रही है। यह बहुत ही खुशी कोई बात है कि आप आगमन ग्वालियर हुआ है। निश्चित ही यहाँ के लोगो को आपके प्रेरक उद्बोधन का लाभ मिलेगा।

कार्यक्रम में बी.के. वर्णिका बहन ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन अलग होता है, उसके अनुभव, उसके संस्कार, उसकी सोच और उसकी चाहतें भी भिन्न होती हैं। कोई सफलता को सबसे बड़ा लक्ष्य मानता है, तो कोई संतोष को ही जीवन का सार समझता है। लेकिन जब हम गहराई से सोचते हैं, तो समझ आता है कि जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है। ये खजाने बाजारों में नहीं मिलते, ये न किसी चीज़ से खरीदे जा सकते हैं और न ही किसी को देकर लिए जा सकते हैं। ये खजाने परमात्मा के पास हैं, और उनका अनुभव तभी होता है जब इंसान स्वयं से जुड़ता है, अपने भीतर झाँकता है। जिंदगी शुरू होती है एक छोटे से मासूम सपने से – पढ़ाई पूरी हो जाए, अच्छे नंबर आ जाएँ। फिर उस सपने में एक और सपना जुड़ जाता है – नौकरी लग जाए, भविष्य सुरक्षित हो जाए। नौकरी मिलती है तो एक और चाह जागती है – अच्छा घर हो, गाड़ी हो, जीवनसाथी हो। फिर एक परिवार बसता है, बच्चे होते हैं, उनके सपनों को पूरा करने की दौड़ शुरू होती है। एक के पीछे एक लक्ष्य आता जाता है, और इंसान उन्हें पूरा करने की कोशिश में पूरी जिंदगी गुजार देता है। लेकिन इन सबके बीच वह भूल जाता है कि वह भाग किसके लिए रहा है, किस मंज़िल की तलाश में है। हर सफलता के बाद एक नई कमी महसूस होती है। हर उपलब्धि के साथ एक नया खालीपन जन्म लेता है। और जब उम्र ढलने लगती है, तब जाकर कहीं दिल से एक धीमी आवाज़ उठती है – अब कुछ नहीं चाहिए, बस थोड़ा सा सुकून चाहिए, थोड़ा सा प्यार चाहिए, थोड़ी सी शांति मिल जाए। यही वह क्षण होता है जब इंसान को समझ आता है कि असली खजाना बाहर नहीं, भीतर है। जो बात शुरुआत में समझ में नहीं आती, वह अंत में साफ हो जाती है – कि जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मिक संतुलन। जब हम खुद से कट जाते हैं, तो सारी दुनिया मिलने पर भी अधूरे रहते हैं। लेकिन जब हम खुद से जुड़ जाते हैं, जब हम परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखकर जीवन को जीते हैं, तब वह खजाना स्वयं हमारे भीतर प्रकट होता है। शांति कोई चीज़ नहीं, यह एक अनुभव है। प्रेम कोई लेन-देन नहीं, यह एक भावना है। संतुष्टि कोई लक्ष्य नहीं, यह जीवन का भाव है। और जब तक हम इन अनुभवों को नहीं जीते, तब तक चाहे हम कुछ भी पा लें, वह अधूरा ही रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने जीवन की रफ्तार को थोड़ा धीमा करें, अपने भीतर झाँकें, उस मौन को सुनें जो हर पल हमें आवाज़ दे रहा है। तभी हमें जीवन का असली खजाना मिलेगा – वह खजाना जो नष्ट नहीं होता, जो सदा हमारे साथ रहता है – परमात्मा की कृपा में बसी हुई शांति, प्रेम और संतोष।

कार्यक्रम में अनुसुईया दीदी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि एक चेतन्य शक्ति आत्मा है। यह आत्मा ही शरीर के माध्यम से सभी कर्म करती है। हमारे हर अच्छे या बुरे कर्म का मूल स्रोत हमारी आत्मा ही होती है। शरीर तो एक माध्यम है। जब आत्मा शुद्ध होती है, तो उसके विचार, वाणी और कर्म भी शुद्ध होते हैं। यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा। जब हम प्रेम से, शांति से और आदरपूर्वक बोलते हैं तो हमारे शब्द केवल शब्द नहीं रहते, वे दुआएँ बन जाते हैं। इन दुआओं का कोई मूल्य नहीं लगा सकता, क्योंकि ये आत्मा को ऊँचा उठाती हैं, कर्मों को हल्का बनाती हैं और जीवन में सच्ची सुख-शांति का आधार बनती हैं।
जब हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, मीठे बोल बोलते हैं, सहायता करते हैं, शुभ सोचते हैं और सद्विचारों को सुनते हैं, तो यह सब आत्मा के भीतर जमा होता जाता है। यह जमा पूँजी ऐसी है जिसे कोई देखे या न देखे, कोई जाने या न जाने, पर आत्मा जानती है कि कुछ अच्छा संचित हुआ है। कभी-कभी हम दिन भर अच्छा व्यवहार करते हैं, सभी से प्रेम से बोलते हैं, और फिर भी कोई हमारी सराहना नहीं करता। पड़ोसियों को पता नहीं चलता, परिवार के लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और हम भीतर ही भीतर दुःखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारी अच्छाई का कोई मूल्य ही नहीं रहा, कोई उसे समझ नहीं रहा। पर यहाँ हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की किस्मत उसके कर्मों से बनती है। मेरे कर्म मेरी किस्मत बनाते हैं और किसी और के कर्म उसकी किस्मत तय करते हैं। अगर कोई मेरी अच्छाई को नहीं मानता, मेरी बात को नहीं समझता, मेरी सेवा का आदर नहीं करता, तो मुझे दुःखी नहीं होना चाहिए। अगर मैं अच्छा करते हुए भी दुःखी हूँ, तो यह मेरी समझ की कमी है। क्योंकि बुरा कर्म करने वाला तो दुःखी रहता ही है, लेकिन जो अच्छा कर्म करके भी दुःखी हो जाए, वह तो और भी बड़ी भूल कर रहा है। परमात्मा सब देखते है। हम उनके बच्चे हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, प्रेम से बोलते हैं, शांति से जीते हैं, सेवा में रहते हैं, तो परमात्मा की कृपा हमारे साथ होती है। इसलिए किसी के न मानने या सराहने न करने से हमें हताश नहीं होना चाहिए। हमारा हर अच्छा कर्म, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, कहीं न कहीं आत्मा में दर्ज हो रहा है। यही हमारे जीवन की असली पूँजी है।


अतः हमें सदा यही याद रखना चाहिए कि कोई देखे या न देखे, कोई माने या न माने, लेकिन यदि हम सही मार्ग पर चल रहे हैं, प्रेम और सेवा के भाव में जी रहे हैं, तो हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। क्योंकि अंततः आत्मा को शांति उसके अपने कर्मों से ही मिलती है, और परमात्मा की दृष्टि से कोई भी अच्छा कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।

कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके ज्योति बहन (मोहना) ने किया तथा आभार बीके प्रहलाद भाई ने किया।

इस अवसर पर बीके जीतू, बीके पवन, बीके सुरभि, बीके रोशनी, सुरेन्द्र, विजेंद्र, पंकज, पीयूस, रवि, गजेन्द्र अरोरा, डॉ स्वेता माहेश्वरी सहित अनेकानेक लोग उपस्थित थे।

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