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ग्वालियर हेलीपेड कॉलोनी में त्रिदिवसीय राजयोग शिविर संपन्न

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ग्वालियर:  श्री हनुमानजी मंदिर पार्क हेलीपेड कॉलोनी में त्रिदिवसीय राजयोग शिविर संपन्न|

जैसा कि हम सभी वर्तमान समय देख रहे हैं कि इतनी भागती – दौड़ती व्यस्त जीवनशैली में किसी भी उम्र के लोग अनावश्यक ही किसी भी समय डिप्रेशन, अनिंद्रा, भय का शिकार हो जाते हैं | इस त्रिदिवसीय शिविर में आप सीखेंगे उस सर्वशक्तिमान परमात्मा से कनेक्ट होने वाले “राजयोग मैडिटेशन” को और साथ ही मुक्त होंगे व्यर्थ के तनाव, चिंता, भय और परेशानियों से और अनुभव करेंगे अपने जीवन में एक विशेष परिवर्तन | उक्त बातें आज ब्रह्माकुमारीज संस्थान से पधारे राजयोगी बी.के. प्रह्लाद भाई जी ने कहीं इसके साथ ही उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में विशेष है, शक्तिशाली है, उसके अन्दर असीम शक्ति है| लेकिन हम यह भूल चुके हैं कि हम सर्वशक्तिमान परमात्मा की संतान हैं और भूलने के कारण ही हम दु:खी हो जाते हैं और अनावश्यक ही दुःख, चिंता परेशानियों में घिर जाते हैं क्यों कि दुनियां में हमारा सबके साथ बहुत अच्छा कनेक्शन है लेकिन एक कनेक्शन टूटा हुआ है वो भी इस संसार के डायरेक्टर के साथ, कनेक्शन हमारा पक्का नहीं है इसलिए आज से जीवन में खुश रहने के लिए, तनावमुक्त और सकारात्मक रहने के लिए एक चीज को जानकर पक्का कर लें कि मेरा इस स्रष्टि के सृजनहार से क्या कनेक्शन है उससे अपना कनेक्शन जोड़ लें क्यों कि यह स्रष्टि एक रंगमंच है और इस पर हम सभी अभिनय कर रहे हैं | हर एक का अभिनय अपना–अपना है लेकिन हम दूसरों के अभिनय को देखकर प्रभावित हो जाते हैं | और टेंशन में आ जाते हैं कि उसको मेरे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था | लेकिन हर कोई अपने –अपने पार्ट को एक्यूरेट प्ले कर रहा है | यदि आप खुश रहना चाहते हैं तो तीन चीजों की जानकारी होना आवश्यक है :”मै कौन हूँ ?“ “मुझे किसने यहाँ भेजा है इस खेल का डायरेक्टर कौन है?”, और “यह खेल क्या है?” दुनियाँ में सभी एक्टर्स के साथ अच्छा कनेक्शन होना जरुरी है लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है उस डायरेक्टर के साथ कनेक्शन, जो भी व्यक्ति उसके साथ कनेक्शन रखता है उसको दुनियां में कोई भी ताकत हरा नहीं सकती | इसका एक उदहारण महाभारत में मिलता है कि कौरवो के पास अक्षोंहिणी सेना थी फिर भी हार गए जबकि पांडवों के पास अक्षोंहिणी सेना नहीं थी लेकिन भगवान का साथ था उसमें भी भगवान ने अस्त्र शस्त्र नहीं उठाये बल्कि अर्जुन को केवल गाईड किया था उस आधार पर ही पांडवो की विजय हुई ठीक उसी प्रकार भगवान को हम अपने साथ रखते है तो हमारी हर कार्य में विजय निश्चित है | इसी स्मृति के साथ जीवन में खुश रहने के लिए, शांत रहने के लिए हमें अपने चिंतन को श्रेष्ठ बनाना होगा उसके लिए थोडा समय हम मैडिटेशन के लिए निकालें |

बी. के. प्रह्लाद भाई ने शिविर के दूसरे दिन सभी को संबोधित करते हुए कहा कि आज मनुष्य के पास ज्ञान सुनने का या मैडिटेशन करने का समय नहीं है लोग ऐसा मानते है कि 60 वर्ष के बाद यह सब करना चाहिए पर वास्तव में ज्ञान सुनने के लिए उम्र नहीं होती | वल्कि जब जिस घडी से ज्ञान मिले उसी क्षण से ज्ञान को जीवन में धारण करने की आवश्यकता है जैसे शरीर को चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती उसी तरह से जीवन को सही रीति से जीने के लिए सत्य ज्ञान की आवश्यकता है|

यदि ऐसा मान लें कि कलियुग में मनुष्य की ओसतन आयु 60 वर्ष है तो उसके हिसाब से

(1)    5 वर्ष उसके वचपन में,

(2)    6 वर्ष शिक्षा में,

(3)    6.5 वर्ष खेलकूंद में,

(4)    14 वर्ष नौकरी में या व्यवसाय में(10 घंटे प्रतिदिन के हिसाब से),

(5)    18 वर्ष सोने में(8 घंटे प्रत्दीन के हिसाब से),

(6)    4.5 वर्ष नहाना/धोना/भोजन इत्यादि में,

(7)    4 वर्ष शोपिंग/विश्राम में

जीवन के 58 वर्ष तो ऐसे ही निकल गए अब सिर्फ 2 वर्ष बचते है वह इन 2 वर्षों में क्या कर सकता है| इसलिए जैसे इन सभी कार्यो के लिए समय फिक्स है वैसे ही थोडा समय मैडिटेशन/ध्यान के लिए फिक्स करना चाहिए जिससे मन शांत रहेगा| जीवन में खुशियाँ रहेंगी | और अपने जीवन का सही आनंद ले सकेगे |

इसके साथ ही राजयोग मैडिटेशन के बारे में बताते हुए कहा कि राजयोग एक बहुत ही सरल और सहज प्रक्रिया है जिसमें हम अपने मन के द्वारा चिंतन करते है और उसी चिंतन को बुद्धि के द्वारा मानस पटल पर चित्रित करते है ऐसा करने पर हम अपने मन और बुद्धि को एकाग्र कर सकते है | ऐसा करने पर सहज ही हम अपने मन को ईश्वर से जोड़ लेते है उसकी शक्तियां मुझे मिलने लगती है | और उसकी याद से हम अपने हर कार्य को सफलता पूर्वक कर सकते है | और जब हम राजयोग का नित्य प्रितिदीन अभ्यास करते है तो हमारे जीवन में अष्ठ शक्तियां आ जाती है | जो हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है | और अष्ट शक्तियों के बारे में सभी को विस्तार से बताया| इसके तत्पश्चात कमेंटरी के माध्यम से सभी को राजयोग मैडिटेशन की गहन अनुभूति भी कराई |

शिविर के तीसरे दिन ग्वालियर सेवाकेंद्र संचालिका राजयोगिनी बीके आदर्श दीदीजी, सीनियर राजयोग टीचर बीके डॉ गुरुचरण भाई औरमोटिवेशनल स्पीकर बीके प्रह्लाद भाई उपस्थित थे| बी.के. डॉ. गुरुचरण भाई ने कहा कि हम सभी उस सर्वशक्तिमान पिता परमात्मा दाता कि संताने हैं तो हमें सर्व के प्रति सहयोग, स्नेह, सम्मान कि भावना रखनी है चाहे कोई मुझे सहयोग दे या न दे लेकिन मुझे देना है, कोई स्नेह दे या न दे मुझे सर्व के प्रति स्नेह कि भावना रखनी है क्यों कि में उस दाता का बच्चा हूँ| इस बात को पक्का कर लें तो तनाव आपके आसपास आ भी नहीं सकता ” जिसका साथी हो भगवान् उसको क्या रोकेगा आंधी और तूफ़ान”| और सभी को अंडरलाइन करवाया कि हम सभी विशेष हैं तो हमारी सोच भी साधारण नहीं होनी चाहिए, यदि कोई भी संकल्प  ऐ-वैसा आये तो सदैव स्मृति रहे कि में उस परमात्मा सर्वोच्च सत्ता कि संतान हूँ तो मेरे संकल्प,विचार भी श्रेष्ठ होने चाहिए|

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मालनपुर ग्वालियर – ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

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ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

तीन दिवसीय रिट्रीट में प्रदेश भर से आई युवा बहनों ने सीखे व्यक्तितव विकास गुर

दुआएं लेना और दुआएं देना अर्थात जीवन को सुंदर बनाना – अनुसूईया दीदी

ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान में आना अर्थात आनंद की अनुभूति करना -आशीष प्रताप सिंह

बिना कहे जब हम काम करते हैं तो दुआएं मिलती हैं – रेखा दीदी

ग्वालियर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्था राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग द्वारा नई उमंग नई तरंग के अंतर्गत गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर में तीन दिवसीय आवासीय रिट्रीट डिवाइन यूथ फोरम का आयोजन किया गया था। जिसमे पूरे प्रदेश से युवा बहनों ने हिस्सा लिया। इस रिट्रीट का उद्देश्य व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देना था।
आज कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़, दिल्ली से पधारी बीके अनुसूईया दीदी, बीके वर्णिका दीदी, सीधी से रेखा दीदी, ग्वालियर गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर प्रमुख बीके ज्योति बहन, युवा प्रभाग के राष्ट्रीय सदस्य बीके प्रहलाद भाई, बीके जानकी आदि उपस्थित थीं।

कार्यक्रम के शुभारंभ ने दिल्ली से आई बीके अनुसूईया दीदी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दुवाओं के वारे में सभी को बताया और कहा कि दुआएं यह कोई खरीदी-बेची जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि हमारे कर्मों की खामोश कमाई होती हैं। जब हम निस्वार्थ भाव से, श्रद्धा और सेवा-भाव से कार्य करते हैं, तो दुआएं स्वतः ही हमारे खाते में जमा होती जाती हैं।
दुआएं कमाने का मार्ग कर्म से होकर जाता है। जब हम अपने कर्मों से अपने बड़ों, गुरुजनों और समाज को निश्चिंत करते हैं। जब हम बिना कहे उनके सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं, तो वह आशीर्वाद नहीं, बल्कि दिल से दुआएं भी देते हैं। यह दुआएं हमारी रक्षा करती हैं, मार्ग प्रशस्त करती हैं, और जीवन को सार्थक बनाती हैं।
दीदी ने आगे कहा कि हम जिनको लोगो के साथ रहते है या जहां कार्य करते है। या फिर कोई सेवा का कार्य करते है। वह हमें अपना समझ करके और बिना कहे करना चाहिए यह सबसे ऊँचा कर्म है। जो काम किसी ने कहा नहीं, पर हमने देख लिया और कर दिया। वही असली सेवा है। सेवा में दिखावा नहीं, समर्पण होना चाहिए। जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए कार्य करते हैं, तो हमें दुआओं की पूंजी मिलती है। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि “यह मेरा काम नहीं है।” कर्म का धर्म यही कहता है कि जहां ज़रूरत हो, वहां सहयोग दिया जाए। यही सहयोग एक दिन हमारी ज़रूरत के समय कई गुना होकर लौटता है।
यूथ विंग की भोपाल ज़ोन की संयोजिका बीके रेखा बहन ने कहा कि जितनी ज़रूरत हो, उतना ही लेना सीखें। आज की दुनिया में लालच हर किसी को खींचता है, पर संतोष और संयम ही वह गुण है जो दूसरों के हिस्से की चीज़ें भी उन्हें लौटाकर हमें दुआएं दिलवाता है। सीमित संसाधनों में संतुलन बनाना, यही सच्चे संस्कारों का परिचायक है।


कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़ ने बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समष्टि के प्रति एकात्मता, सर्वभूत हितेरेता:
एवं सर्वे भवंतु सुखिनः जैसे उच्च स्तरीय मूल्यों के उपासक होने पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के भाइयों बहनों ने हम सब को गौरवान्वित किया हैं। हमारे जो गुरुजन होते हैं उनकी शिक्षा से ही हमारा विकास होता हैं
जिस प्रकार हमारा देश आगे बढ़ रहा हैं। और आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बड़ी हैं।
मैं पिछले कुछ वर्षो से ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुड़ा हुआ हूँ। और मुझे यहां आकर के आनंद की अनुभूति होती हैं।
आज की पीढ़ी अपने नेचर को भूलती जा रही हैं
यह संस्था सभी लोगों को नेचर और सांस्कृतिक से जोड़ती हैं।
कार्यक्रम में दिल्ली से आई बीके वर्णिका बहन ने कहा कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना ही दुआओं की कुंजी है। जब हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सभी के भले की कामना करते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि से हमें सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
बचपन से ही हमें ऐसे मूल्य और सोच अपनाने चाहिए कि जहाँ भी हम जाएँ, वहाँ शांति, सहयोग, और करुणा का संचार हो। यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है। दुआएं सिर्फ शब्दों से नहीं, व्यवहार से दी जाती हैं। प्रेरणा देकर, मार्गदर्शन देकर।


गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर की प्रभारी बीके ज्योति दीदी ने भी अपनी शुभकामनाएं दीं और कहा कि जिस दिन हमारे अंदर संतोष धन आ जाता हैं फिर बाहर का कोई भी आकर्षण महसूस नहीं होता हैं।
अपने लिए जिए तो क्या जिए, जीवन में दूसरों का भला ही असली जीवन है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके प्रहलाद भाई ने किया तथा सभी का आभार बीना से पधारी बीके जानकी दीदी ने किया।
इस अवसर पर नीलम बहन, रेखा बहन, खुशबू बहन, महेश भाई, आशीष भाई, मीरा बहन, अर्चना बहन, सपना बहन सहित अनेकानेक बहने उपस्थित थीं

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न्यूज़ कवरेज – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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मालनपुर ग्वालियर – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है – बीके वर्णिका बहन

यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा – बी के अनुसुईया दीदी

ग्वालियर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के माधवगंज स्थित प्रभु उपहार भवन में दिल्ली से आई बीके अनुसुईया दीदी एवं वर्णिका बहन का स्वागत अभिनन्दन किया गया।


इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ लश्कर केंद्र प्रमुख बीके आदर्श दीदी ने शब्दों से एवं पुष्पगुच्छों से पधारे हुए अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन किया। और कहा कि मानव जीवन बहुत ही अनमोल हैं इसकी हमें हमेशा वैल्यू करनी चाहिए। और हमेशा श्रेष्ठ कर्म ही करना चाहिए। आज हमारे बीच अनुसुईया दीदी पहुंची है जो कि पिछले 60 वर्षों एवं वर्णिका बहन पिछले 11 वर्षों से ब्रह्माकुमारीज संस्थान में प्रेरक वक्ता एवं राजयोग ध्यान प्रशिक्षका के रूप में समर्पित होकर अपनी सेवाएँ दें रही है। और आपके माध्यम से हजारों, लाखों लोगो को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिल रही है। यह बहुत ही खुशी कोई बात है कि आप आगमन ग्वालियर हुआ है। निश्चित ही यहाँ के लोगो को आपके प्रेरक उद्बोधन का लाभ मिलेगा।

कार्यक्रम में बी.के. वर्णिका बहन ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन अलग होता है, उसके अनुभव, उसके संस्कार, उसकी सोच और उसकी चाहतें भी भिन्न होती हैं। कोई सफलता को सबसे बड़ा लक्ष्य मानता है, तो कोई संतोष को ही जीवन का सार समझता है। लेकिन जब हम गहराई से सोचते हैं, तो समझ आता है कि जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है। ये खजाने बाजारों में नहीं मिलते, ये न किसी चीज़ से खरीदे जा सकते हैं और न ही किसी को देकर लिए जा सकते हैं। ये खजाने परमात्मा के पास हैं, और उनका अनुभव तभी होता है जब इंसान स्वयं से जुड़ता है, अपने भीतर झाँकता है। जिंदगी शुरू होती है एक छोटे से मासूम सपने से – पढ़ाई पूरी हो जाए, अच्छे नंबर आ जाएँ। फिर उस सपने में एक और सपना जुड़ जाता है – नौकरी लग जाए, भविष्य सुरक्षित हो जाए। नौकरी मिलती है तो एक और चाह जागती है – अच्छा घर हो, गाड़ी हो, जीवनसाथी हो। फिर एक परिवार बसता है, बच्चे होते हैं, उनके सपनों को पूरा करने की दौड़ शुरू होती है। एक के पीछे एक लक्ष्य आता जाता है, और इंसान उन्हें पूरा करने की कोशिश में पूरी जिंदगी गुजार देता है। लेकिन इन सबके बीच वह भूल जाता है कि वह भाग किसके लिए रहा है, किस मंज़िल की तलाश में है। हर सफलता के बाद एक नई कमी महसूस होती है। हर उपलब्धि के साथ एक नया खालीपन जन्म लेता है। और जब उम्र ढलने लगती है, तब जाकर कहीं दिल से एक धीमी आवाज़ उठती है – अब कुछ नहीं चाहिए, बस थोड़ा सा सुकून चाहिए, थोड़ा सा प्यार चाहिए, थोड़ी सी शांति मिल जाए। यही वह क्षण होता है जब इंसान को समझ आता है कि असली खजाना बाहर नहीं, भीतर है। जो बात शुरुआत में समझ में नहीं आती, वह अंत में साफ हो जाती है – कि जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मिक संतुलन। जब हम खुद से कट जाते हैं, तो सारी दुनिया मिलने पर भी अधूरे रहते हैं। लेकिन जब हम खुद से जुड़ जाते हैं, जब हम परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखकर जीवन को जीते हैं, तब वह खजाना स्वयं हमारे भीतर प्रकट होता है। शांति कोई चीज़ नहीं, यह एक अनुभव है। प्रेम कोई लेन-देन नहीं, यह एक भावना है। संतुष्टि कोई लक्ष्य नहीं, यह जीवन का भाव है। और जब तक हम इन अनुभवों को नहीं जीते, तब तक चाहे हम कुछ भी पा लें, वह अधूरा ही रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने जीवन की रफ्तार को थोड़ा धीमा करें, अपने भीतर झाँकें, उस मौन को सुनें जो हर पल हमें आवाज़ दे रहा है। तभी हमें जीवन का असली खजाना मिलेगा – वह खजाना जो नष्ट नहीं होता, जो सदा हमारे साथ रहता है – परमात्मा की कृपा में बसी हुई शांति, प्रेम और संतोष।

कार्यक्रम में अनुसुईया दीदी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि एक चेतन्य शक्ति आत्मा है। यह आत्मा ही शरीर के माध्यम से सभी कर्म करती है। हमारे हर अच्छे या बुरे कर्म का मूल स्रोत हमारी आत्मा ही होती है। शरीर तो एक माध्यम है। जब आत्मा शुद्ध होती है, तो उसके विचार, वाणी और कर्म भी शुद्ध होते हैं। यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा। जब हम प्रेम से, शांति से और आदरपूर्वक बोलते हैं तो हमारे शब्द केवल शब्द नहीं रहते, वे दुआएँ बन जाते हैं। इन दुआओं का कोई मूल्य नहीं लगा सकता, क्योंकि ये आत्मा को ऊँचा उठाती हैं, कर्मों को हल्का बनाती हैं और जीवन में सच्ची सुख-शांति का आधार बनती हैं।
जब हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, मीठे बोल बोलते हैं, सहायता करते हैं, शुभ सोचते हैं और सद्विचारों को सुनते हैं, तो यह सब आत्मा के भीतर जमा होता जाता है। यह जमा पूँजी ऐसी है जिसे कोई देखे या न देखे, कोई जाने या न जाने, पर आत्मा जानती है कि कुछ अच्छा संचित हुआ है। कभी-कभी हम दिन भर अच्छा व्यवहार करते हैं, सभी से प्रेम से बोलते हैं, और फिर भी कोई हमारी सराहना नहीं करता। पड़ोसियों को पता नहीं चलता, परिवार के लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और हम भीतर ही भीतर दुःखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारी अच्छाई का कोई मूल्य ही नहीं रहा, कोई उसे समझ नहीं रहा। पर यहाँ हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की किस्मत उसके कर्मों से बनती है। मेरे कर्म मेरी किस्मत बनाते हैं और किसी और के कर्म उसकी किस्मत तय करते हैं। अगर कोई मेरी अच्छाई को नहीं मानता, मेरी बात को नहीं समझता, मेरी सेवा का आदर नहीं करता, तो मुझे दुःखी नहीं होना चाहिए। अगर मैं अच्छा करते हुए भी दुःखी हूँ, तो यह मेरी समझ की कमी है। क्योंकि बुरा कर्म करने वाला तो दुःखी रहता ही है, लेकिन जो अच्छा कर्म करके भी दुःखी हो जाए, वह तो और भी बड़ी भूल कर रहा है। परमात्मा सब देखते है। हम उनके बच्चे हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, प्रेम से बोलते हैं, शांति से जीते हैं, सेवा में रहते हैं, तो परमात्मा की कृपा हमारे साथ होती है। इसलिए किसी के न मानने या सराहने न करने से हमें हताश नहीं होना चाहिए। हमारा हर अच्छा कर्म, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, कहीं न कहीं आत्मा में दर्ज हो रहा है। यही हमारे जीवन की असली पूँजी है।


अतः हमें सदा यही याद रखना चाहिए कि कोई देखे या न देखे, कोई माने या न माने, लेकिन यदि हम सही मार्ग पर चल रहे हैं, प्रेम और सेवा के भाव में जी रहे हैं, तो हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। क्योंकि अंततः आत्मा को शांति उसके अपने कर्मों से ही मिलती है, और परमात्मा की दृष्टि से कोई भी अच्छा कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।

कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके ज्योति बहन (मोहना) ने किया तथा आभार बीके प्रहलाद भाई ने किया।

इस अवसर पर बीके जीतू, बीके पवन, बीके सुरभि, बीके रोशनी, सुरेन्द्र, विजेंद्र, पंकज, पीयूस, रवि, गजेन्द्र अरोरा, डॉ स्वेता माहेश्वरी सहित अनेकानेक लोग उपस्थित थे।

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