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ग्वालियर – ​दो दिवसीय ‘जिंदगी बने आसान कार्यक्रम’ – राजयोगी सूरज भाई ने किया संबोंधित

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जिंदगी बने आसान कार्यक्रम  

हमारे हर संकल्प में है निर्माण करने की शक्ति : राजयोगी सूरज भाई 

ग्वालियर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ग्वालियर द्वारा दो दिवसीय जिंदगी बने आसान कार्यक्रम का आयोजन म. प्र. चेम्बर ऑफ कॉमर्स के राजमाता विजयराजे सिंधिया सभागार मे किया गया कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वल्लन के साथ हुआ कार्यक्रम में मुख्य रूप से श्री जयदीप शाह (अकाउंटेंट जनरल ऑफ मध्यप्रदेश), श्रीमति माधवी शाह (वरिष्ठ योगा एक्सपर्ट), श्री राकेश जादौन (अध्यक्ष तुलसी मानस प्रतिष्ठान एवं पूर्व अध्यक्ष विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण), श्री पीताम्बर लोकवानी (व्यवसायी), डॉ. एस. पी. बत्रा (आरोग्य भारती), मुख्य वक्ता राजयोगी बी. के. सूरज भाई, बी.के.गीता बहन, बी.के. संदीप भाई, बी. के. आदर्श बहन (संचालिका लश्कर सेवाकेंद्र), बी. के. डॉ. गुरुचरण भाई, आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम के आरंभ में बी.के. आदर्श दीदी जी ने अतिथियों केए पुष्पगुछों के द्वारा सभी स्वागत किया। तत्पश्चात माउंट आबू  से आए अंतर्राष्ट्रीय राजयोग मेडिटेशन एक्सपर्ट राजयोगी बी. के. सूरज भाई जी ने अपने विचार रखते हुये  कहा कि दिन  प्रतिदिन समस्याएँ बढ़ती जा रहीं हैं चारों ओर तनाव, दुख, अशांति और भय का वातावरण है | सभी वर्गों में सामान्यत: जीवन मूल्यों, नैतिक मूल्यों का अभाव देखने को मिल रहा है| विशेष हमारे युवा वर्ग मे गिरावट आ रही है उन्हें संभालना होगा| आज मनुष्य अपनी वास्तविक शक्तियों को भूल गया है और उसने अपने आपको बहुत परेशान कर लिया है| तो वर्तमान समय मनुष्य को जिस परिवर्तन की सबसे ज्यादा जरूरत है वह है अपने विचारों में परिवर्तन लाने की | अपने मन को शुद्ध विचार रूपी आहार से पोषित करने की| क्यों कि हमारी सोच ही हमारे व्यक्तित्व व चरित्र का निर्माण करती है| उन्होने बताया कि जब हमारे विचारों में व्यर्थ और नकारात्मकता बढ़ जाती है तभी भय का जन्म होता है| इस स्थिति में हमें अपने विचारों का निरीक्षण और विश्लेषण करना पड़ेगा | सकारात्मक विचार हमारी कार्यक्षमता और एकाग्रता को बढ़ाते हैं इसलिए हमें सकारात्मक और शक्तिशाली सोच रखनी चाहिए| हमारे हर एक संकल्प से ऊर्जा निकलती है और वह ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती सिर्फ रूप बदलती है| और हमारे जीवन का निर्माण भी हमारे विचारों की ऊर्जा से ही होता है| हमारे हर संकल्प में निर्माण करने की शक्ति है| जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हमारा जीवन व संसार होता जाता है| इसके लिए भाईजी ने बहुत ही सुंदर सा प्रयोग बताया कि आप सुबह उठते के साथ वही संकल्प करो जो आप अपने जीवन में चाहते हो | सुबह उठने के साथ 3 मिनिट जो आप संकल्प करेंगे वही आपका जीवन होगा| और आप जिन भी ऊचाइयों पर अपने जीवन में  पहुँचना चाहते हैं वहाँ अवश्य ही पहुचेंगे| संसार की कोई भी शक्ति आपको वहाँ पहुँचने से रोक नहीं पाएगी| साथ ही भाई जी ने वर्तमान की एक और महत्वपूर्ण समस्या सम्बन्धों में तनाव, अलगाव पर विशेष प्रकाश डालते हुए बताया कि आज हमारे सम्बन्धों में से मधुरता, अपनापन, जुड़ाव आदि गायब से हो गए हैं यदि हमें अपने परिवार में, आपसी सम्बन्धों में प्यार की गंगा बहानी है एवं सुखद, आनंदमय माहोल निर्मित करना है तो इसके लिए जरूरी है एक दूसरे की कमियों को देखने के बजाय एक दूसरे के छोटे-छोटे कार्यों की प्रशंसा करें इससे सम्बन्धों में आपसी प्रेम बढ़ता जाएगा| क्यों कि जहां एक छोटा सा अच्छा व्यवहार हमारे सम्बन्धों में परस्पर मधुरता, अपनापन बढ़ाता है और वहीं दूसरी ओर एक गलत व्यवहार सम्बन्धों में घ्रणा, ईर्ष्या, द्वेष और अलगाव का कारण बनता है|इसलिए जैसा व्यवहार हम अपने लिए दूसरों से चाहते हैं वैसा हम भी दूसरों के लिए रखें और जीवन को सरल सहज रूप से भरपूर आनंद लेकर जिये| सदैव सुख देते चलें, खुश रहें और खुशियाँ बांटते चलें |

इसके साथ ही उन्होंने कुछ मुख्य बाते कहीं जो सभी के जीवन के लिए अति आवश्यक है।

  1. हमें धन को सबकुछ नहीं समझना चाहिए धन हमारे जीवन के लिए आवश्यक तो है पर सबकुछ नहीं है। हमारे लिए जरूरी है मन की शांति,खुशी, आनंद और प्रेम।
  2. दूसरी बात बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जिन्होंने सुबह के सूरज को कभी उगते नही देखा तो भाग्य का सूरज कैसे उदय होगा एक कहावत है कि जल्दी सोएंगे जल्दी जागेंगे तो हेल्दी और हैप्पी रहेंगे लेकिन आज उल्टा हो गया है लोग देर से सोते है और देर से जागते है तो अस्वस्थ और खुशी गायब हो गई है।
  3. तीसरी बात हम मन को कभी चार्ज नहीं करते,सबेरे उठकर मन को चार्ज करना न भूलें अपने उस परमपिता परमात्मा से गुडमार्निंग करके दिन की शुरूवात करें और परमात्मा  का शुक्रियाअदा करना न भूलें आपने मुझे सबकुछ दिया आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
  • भगवान हमारा परमपिता भी है तो सच्चा मित्र भी है हम उसकी संतान है वह अपनी संतान को दुखी नही देख सकता वह हमको सुखी देखना चाहता है। यदि आपको कोई समस्या है आपका किसी बात से मन भारी है, आपको नींद नही आ रही है तो खुदा दोस्त के नाम एक लेटर लिख दिया करें तो जीवन बदल जायेगा। सोएंगे भी मुस्कराते हुए और जागेंगे भी मुस्कराते हुए साथ ही जीवन में सकारात्मक रहने के लिए कुछ टिप्स भी शेयर किए:
  • जीवन की हर एक घटना में आपको किसी न किसी रूप में लाभ ही प्राप्त होता है परोक्ष तथा अपरोक्ष रूप से होने वाले लाभ के बारे में सोचिए|
  • भूतकाल की गलतियों का पश्चाताप न करें और आने वाले भविष्य की चिंता न करें सिर्फ वर्तमान को सफल बनाने के लिए पूरा प्रयत्न करें|
  • आप दु:ख पहुंचाने वाले को क्षमा कर दो और उसे भूल जाओ|
  • अपने जीवन की तुलना किसी के भी साथ करके चिंतित न हों क्यों कि प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में      अनोखा और विशिष्ट है आपके जैसा इस विश्व में कोई भी नहीं|
  • जिस परिस्थिति को आप बदल नहीं सकते उसके बारे में सोचकर दु:खी न हो याद रखिए समय एक श्रेष्ठ दवाई है |
  • बदला न लो अपितु स्वयं को बदलने का प्रयत्न करो| बदला लेने कि इच्छा रखने से मानसिक तनाव ही बढ़ता है और स्वयं को बदलने का लक्ष्य रखने से जीवन में प्रगति होती है|  साथ ही भाई जी ने सुबह उठते ही कुछ अभ्यास करने के लिए सभी से आग्रह किया कि यदि आप यह अभ्यास प्रतिदिन करते हैं कि मै महान आत्मा हूँ, मै सर्वशक्तिमान परमपिता कि संतान मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो हम अपनी खोयी हुई शक्तियों को पुन: प्राप्त करने लगेंगे|

कार्यक्रम में माउंट आबू से आई बी. के. गीता बहिन ने वर्तमान समय की सबसे बड़ी कमजोरी विशेष ‘क्रोध’ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हर परिस्थिति में शांत रहना सीखें, धैर्य रखें क्यों कि क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो अंदर कि शांति और शक्ति को जलाती है| उन्होने कहा क्रोध को इंग्लिश में ‘एंगर’ कहते हैं और एंगर कब ‘डेंजर’ में बदल जाए पता ही नहीं चलता| कहावत है कि जिस घर में क्रोध होता है उस घर में पानी के घड़े ही सूख जाते हैं परंतु पानी ही क्या क्रोधी व्यक्ति का खून भी सूख जाता है अत: मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए बल्कि उसका निरोध करना चाहिए| उन्होने बताया कि क्रोध मनुष्य को अनेक रूपों में सताता है द्वेष, ईर्ष्या, बदले की भावना, रूष्ट होना, हिंसा, वैर, विरोध कि भावनाएं सब क्रोध के ही भिन्न- भिन्न रूप हैं|एकबार क्रोध करने से हम अपनी 6घंटे की कार्यक्षमता को खो देते हैं यहाँ तक कि अनेकानेक बीमारियों की भी चपेट में आ जाते हैं| उन्होने कहा कि अपनी स्थिति बिगाड़कर कोई दूसरों कि स्थिति ठीक नहीं कर सकता| और कहा कि क्रोध मुक्त होना कोई बड़ी बात नहीं हैं केवल स्म्रती की ही बात है स्म्रती से सब चीज़ें ठीक हो जाती हैं| उन्होने इसके लिए एक सुंदर सा अभ्यास भी बताया कि यदि आप 21 दिन यह छोटा सा चिंतन करते हैं कि “मैं आत्मा शांत हूँ” तो 21 दिनों में निश्चित ही आपके अंदर शांति आने लगेगी|

पुणे से आए बी. के. संदीप भाई ने बताया कि नियमित रूप से मेडिटेशन का अभ्यास हमें आंतरिक रूप से मजबूत बनाता हैं और स्थायी सुख व शांति प्रदान करता है|

कार्यक्रम के अंत मे सामाजिक एवं व्यापारिक संगठनों के द्वारा बी.के. सूरज भाई जी का सम्मान किया गया।

पंजाबी सेवा समिति ग्वालियर,

ग्वालियर प्रिंटिंग एसोसिएसन,

नया बाजार होलसेल क्लॉथ मर्चेन्टायल्स एसोसियेसन,

तुलसी मानस प्रतिष्ठान

दाल बाजार व्यापार समिति

लॉयन्स क्लब,

कमला सिंह बेलफेयर फाउंडेशन,

लक्ष्मी कंस्ट्रक्शन,

कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स,

भारतीय योग संस्थान,

सिन्धविहार कम्युनिटी आदि संस्थानों ने सम्मान किया।

कार्यक्रम में 2000 एसई अधिक लोगो ने भाग लिया |

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मालनपुर ग्वालियर – ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

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ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

तीन दिवसीय रिट्रीट में प्रदेश भर से आई युवा बहनों ने सीखे व्यक्तितव विकास गुर

दुआएं लेना और दुआएं देना अर्थात जीवन को सुंदर बनाना – अनुसूईया दीदी

ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान में आना अर्थात आनंद की अनुभूति करना -आशीष प्रताप सिंह

बिना कहे जब हम काम करते हैं तो दुआएं मिलती हैं – रेखा दीदी

ग्वालियर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्था राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग द्वारा नई उमंग नई तरंग के अंतर्गत गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर में तीन दिवसीय आवासीय रिट्रीट डिवाइन यूथ फोरम का आयोजन किया गया था। जिसमे पूरे प्रदेश से युवा बहनों ने हिस्सा लिया। इस रिट्रीट का उद्देश्य व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देना था।
आज कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़, दिल्ली से पधारी बीके अनुसूईया दीदी, बीके वर्णिका दीदी, सीधी से रेखा दीदी, ग्वालियर गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर प्रमुख बीके ज्योति बहन, युवा प्रभाग के राष्ट्रीय सदस्य बीके प्रहलाद भाई, बीके जानकी आदि उपस्थित थीं।

कार्यक्रम के शुभारंभ ने दिल्ली से आई बीके अनुसूईया दीदी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दुवाओं के वारे में सभी को बताया और कहा कि दुआएं यह कोई खरीदी-बेची जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि हमारे कर्मों की खामोश कमाई होती हैं। जब हम निस्वार्थ भाव से, श्रद्धा और सेवा-भाव से कार्य करते हैं, तो दुआएं स्वतः ही हमारे खाते में जमा होती जाती हैं।
दुआएं कमाने का मार्ग कर्म से होकर जाता है। जब हम अपने कर्मों से अपने बड़ों, गुरुजनों और समाज को निश्चिंत करते हैं। जब हम बिना कहे उनके सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं, तो वह आशीर्वाद नहीं, बल्कि दिल से दुआएं भी देते हैं। यह दुआएं हमारी रक्षा करती हैं, मार्ग प्रशस्त करती हैं, और जीवन को सार्थक बनाती हैं।
दीदी ने आगे कहा कि हम जिनको लोगो के साथ रहते है या जहां कार्य करते है। या फिर कोई सेवा का कार्य करते है। वह हमें अपना समझ करके और बिना कहे करना चाहिए यह सबसे ऊँचा कर्म है। जो काम किसी ने कहा नहीं, पर हमने देख लिया और कर दिया। वही असली सेवा है। सेवा में दिखावा नहीं, समर्पण होना चाहिए। जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए कार्य करते हैं, तो हमें दुआओं की पूंजी मिलती है। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि “यह मेरा काम नहीं है।” कर्म का धर्म यही कहता है कि जहां ज़रूरत हो, वहां सहयोग दिया जाए। यही सहयोग एक दिन हमारी ज़रूरत के समय कई गुना होकर लौटता है।
यूथ विंग की भोपाल ज़ोन की संयोजिका बीके रेखा बहन ने कहा कि जितनी ज़रूरत हो, उतना ही लेना सीखें। आज की दुनिया में लालच हर किसी को खींचता है, पर संतोष और संयम ही वह गुण है जो दूसरों के हिस्से की चीज़ें भी उन्हें लौटाकर हमें दुआएं दिलवाता है। सीमित संसाधनों में संतुलन बनाना, यही सच्चे संस्कारों का परिचायक है।


कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़ ने बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समष्टि के प्रति एकात्मता, सर्वभूत हितेरेता:
एवं सर्वे भवंतु सुखिनः जैसे उच्च स्तरीय मूल्यों के उपासक होने पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के भाइयों बहनों ने हम सब को गौरवान्वित किया हैं। हमारे जो गुरुजन होते हैं उनकी शिक्षा से ही हमारा विकास होता हैं
जिस प्रकार हमारा देश आगे बढ़ रहा हैं। और आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बड़ी हैं।
मैं पिछले कुछ वर्षो से ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुड़ा हुआ हूँ। और मुझे यहां आकर के आनंद की अनुभूति होती हैं।
आज की पीढ़ी अपने नेचर को भूलती जा रही हैं
यह संस्था सभी लोगों को नेचर और सांस्कृतिक से जोड़ती हैं।
कार्यक्रम में दिल्ली से आई बीके वर्णिका बहन ने कहा कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना ही दुआओं की कुंजी है। जब हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सभी के भले की कामना करते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि से हमें सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
बचपन से ही हमें ऐसे मूल्य और सोच अपनाने चाहिए कि जहाँ भी हम जाएँ, वहाँ शांति, सहयोग, और करुणा का संचार हो। यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है। दुआएं सिर्फ शब्दों से नहीं, व्यवहार से दी जाती हैं। प्रेरणा देकर, मार्गदर्शन देकर।


गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर की प्रभारी बीके ज्योति दीदी ने भी अपनी शुभकामनाएं दीं और कहा कि जिस दिन हमारे अंदर संतोष धन आ जाता हैं फिर बाहर का कोई भी आकर्षण महसूस नहीं होता हैं।
अपने लिए जिए तो क्या जिए, जीवन में दूसरों का भला ही असली जीवन है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके प्रहलाद भाई ने किया तथा सभी का आभार बीना से पधारी बीके जानकी दीदी ने किया।
इस अवसर पर नीलम बहन, रेखा बहन, खुशबू बहन, महेश भाई, आशीष भाई, मीरा बहन, अर्चना बहन, सपना बहन सहित अनेकानेक बहने उपस्थित थीं

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न्यूज़ कवरेज – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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मालनपुर ग्वालियर – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

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जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है – बीके वर्णिका बहन

यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा – बी के अनुसुईया दीदी

ग्वालियर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के माधवगंज स्थित प्रभु उपहार भवन में दिल्ली से आई बीके अनुसुईया दीदी एवं वर्णिका बहन का स्वागत अभिनन्दन किया गया।


इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ लश्कर केंद्र प्रमुख बीके आदर्श दीदी ने शब्दों से एवं पुष्पगुच्छों से पधारे हुए अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन किया। और कहा कि मानव जीवन बहुत ही अनमोल हैं इसकी हमें हमेशा वैल्यू करनी चाहिए। और हमेशा श्रेष्ठ कर्म ही करना चाहिए। आज हमारे बीच अनुसुईया दीदी पहुंची है जो कि पिछले 60 वर्षों एवं वर्णिका बहन पिछले 11 वर्षों से ब्रह्माकुमारीज संस्थान में प्रेरक वक्ता एवं राजयोग ध्यान प्रशिक्षका के रूप में समर्पित होकर अपनी सेवाएँ दें रही है। और आपके माध्यम से हजारों, लाखों लोगो को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिल रही है। यह बहुत ही खुशी कोई बात है कि आप आगमन ग्वालियर हुआ है। निश्चित ही यहाँ के लोगो को आपके प्रेरक उद्बोधन का लाभ मिलेगा।

कार्यक्रम में बी.के. वर्णिका बहन ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन अलग होता है, उसके अनुभव, उसके संस्कार, उसकी सोच और उसकी चाहतें भी भिन्न होती हैं। कोई सफलता को सबसे बड़ा लक्ष्य मानता है, तो कोई संतोष को ही जीवन का सार समझता है। लेकिन जब हम गहराई से सोचते हैं, तो समझ आता है कि जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है। ये खजाने बाजारों में नहीं मिलते, ये न किसी चीज़ से खरीदे जा सकते हैं और न ही किसी को देकर लिए जा सकते हैं। ये खजाने परमात्मा के पास हैं, और उनका अनुभव तभी होता है जब इंसान स्वयं से जुड़ता है, अपने भीतर झाँकता है। जिंदगी शुरू होती है एक छोटे से मासूम सपने से – पढ़ाई पूरी हो जाए, अच्छे नंबर आ जाएँ। फिर उस सपने में एक और सपना जुड़ जाता है – नौकरी लग जाए, भविष्य सुरक्षित हो जाए। नौकरी मिलती है तो एक और चाह जागती है – अच्छा घर हो, गाड़ी हो, जीवनसाथी हो। फिर एक परिवार बसता है, बच्चे होते हैं, उनके सपनों को पूरा करने की दौड़ शुरू होती है। एक के पीछे एक लक्ष्य आता जाता है, और इंसान उन्हें पूरा करने की कोशिश में पूरी जिंदगी गुजार देता है। लेकिन इन सबके बीच वह भूल जाता है कि वह भाग किसके लिए रहा है, किस मंज़िल की तलाश में है। हर सफलता के बाद एक नई कमी महसूस होती है। हर उपलब्धि के साथ एक नया खालीपन जन्म लेता है। और जब उम्र ढलने लगती है, तब जाकर कहीं दिल से एक धीमी आवाज़ उठती है – अब कुछ नहीं चाहिए, बस थोड़ा सा सुकून चाहिए, थोड़ा सा प्यार चाहिए, थोड़ी सी शांति मिल जाए। यही वह क्षण होता है जब इंसान को समझ आता है कि असली खजाना बाहर नहीं, भीतर है। जो बात शुरुआत में समझ में नहीं आती, वह अंत में साफ हो जाती है – कि जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मिक संतुलन। जब हम खुद से कट जाते हैं, तो सारी दुनिया मिलने पर भी अधूरे रहते हैं। लेकिन जब हम खुद से जुड़ जाते हैं, जब हम परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखकर जीवन को जीते हैं, तब वह खजाना स्वयं हमारे भीतर प्रकट होता है। शांति कोई चीज़ नहीं, यह एक अनुभव है। प्रेम कोई लेन-देन नहीं, यह एक भावना है। संतुष्टि कोई लक्ष्य नहीं, यह जीवन का भाव है। और जब तक हम इन अनुभवों को नहीं जीते, तब तक चाहे हम कुछ भी पा लें, वह अधूरा ही रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने जीवन की रफ्तार को थोड़ा धीमा करें, अपने भीतर झाँकें, उस मौन को सुनें जो हर पल हमें आवाज़ दे रहा है। तभी हमें जीवन का असली खजाना मिलेगा – वह खजाना जो नष्ट नहीं होता, जो सदा हमारे साथ रहता है – परमात्मा की कृपा में बसी हुई शांति, प्रेम और संतोष।

कार्यक्रम में अनुसुईया दीदी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि एक चेतन्य शक्ति आत्मा है। यह आत्मा ही शरीर के माध्यम से सभी कर्म करती है। हमारे हर अच्छे या बुरे कर्म का मूल स्रोत हमारी आत्मा ही होती है। शरीर तो एक माध्यम है। जब आत्मा शुद्ध होती है, तो उसके विचार, वाणी और कर्म भी शुद्ध होते हैं। यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा। जब हम प्रेम से, शांति से और आदरपूर्वक बोलते हैं तो हमारे शब्द केवल शब्द नहीं रहते, वे दुआएँ बन जाते हैं। इन दुआओं का कोई मूल्य नहीं लगा सकता, क्योंकि ये आत्मा को ऊँचा उठाती हैं, कर्मों को हल्का बनाती हैं और जीवन में सच्ची सुख-शांति का आधार बनती हैं।
जब हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, मीठे बोल बोलते हैं, सहायता करते हैं, शुभ सोचते हैं और सद्विचारों को सुनते हैं, तो यह सब आत्मा के भीतर जमा होता जाता है। यह जमा पूँजी ऐसी है जिसे कोई देखे या न देखे, कोई जाने या न जाने, पर आत्मा जानती है कि कुछ अच्छा संचित हुआ है। कभी-कभी हम दिन भर अच्छा व्यवहार करते हैं, सभी से प्रेम से बोलते हैं, और फिर भी कोई हमारी सराहना नहीं करता। पड़ोसियों को पता नहीं चलता, परिवार के लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और हम भीतर ही भीतर दुःखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारी अच्छाई का कोई मूल्य ही नहीं रहा, कोई उसे समझ नहीं रहा। पर यहाँ हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की किस्मत उसके कर्मों से बनती है। मेरे कर्म मेरी किस्मत बनाते हैं और किसी और के कर्म उसकी किस्मत तय करते हैं। अगर कोई मेरी अच्छाई को नहीं मानता, मेरी बात को नहीं समझता, मेरी सेवा का आदर नहीं करता, तो मुझे दुःखी नहीं होना चाहिए। अगर मैं अच्छा करते हुए भी दुःखी हूँ, तो यह मेरी समझ की कमी है। क्योंकि बुरा कर्म करने वाला तो दुःखी रहता ही है, लेकिन जो अच्छा कर्म करके भी दुःखी हो जाए, वह तो और भी बड़ी भूल कर रहा है। परमात्मा सब देखते है। हम उनके बच्चे हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, प्रेम से बोलते हैं, शांति से जीते हैं, सेवा में रहते हैं, तो परमात्मा की कृपा हमारे साथ होती है। इसलिए किसी के न मानने या सराहने न करने से हमें हताश नहीं होना चाहिए। हमारा हर अच्छा कर्म, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, कहीं न कहीं आत्मा में दर्ज हो रहा है। यही हमारे जीवन की असली पूँजी है।


अतः हमें सदा यही याद रखना चाहिए कि कोई देखे या न देखे, कोई माने या न माने, लेकिन यदि हम सही मार्ग पर चल रहे हैं, प्रेम और सेवा के भाव में जी रहे हैं, तो हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। क्योंकि अंततः आत्मा को शांति उसके अपने कर्मों से ही मिलती है, और परमात्मा की दृष्टि से कोई भी अच्छा कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।

कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके ज्योति बहन (मोहना) ने किया तथा आभार बीके प्रहलाद भाई ने किया।

इस अवसर पर बीके जीतू, बीके पवन, बीके सुरभि, बीके रोशनी, सुरेन्द्र, विजेंद्र, पंकज, पीयूस, रवि, गजेन्द्र अरोरा, डॉ स्वेता माहेश्वरी सहित अनेकानेक लोग उपस्थित थे।

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