Indraganj Lashkar
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की पूर्व संध्या पर 8 दिवसीय वेबिनार का शुभारम्भ – युवा और योग (20.06.2021)

ग्वालियर :- प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्थान राजयोग एजुकेशन एंड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग के द्वारा “ यूथ फॉर ग्लोबल पीस” के अंतर्गत एक ऑनलाइन वेबिनार का आयोजन किया जिसका विषय – युवा और योग था | इस वेबिनार का उद्देश्य सभी युवाओं को योग के प्रति जागरुक करना था |
जिसमें मुख्य रूप से बी.के.निर्मला दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, रीवा), बी.के.शैलजा दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, छतरपुर), बी.के.रेखा दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, मुरेना), बी.के.नीता दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, नीलबड़, भोपाल), बी.के.पंचशिला दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, सीहोर), डॉ.संतोष कुमार गुजरे (संकाय सदस्य योग अध्यनशाला, डॉ. बी. आर.अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्व विद्यालय, महू), श्रीमती मीना शर्मा (व्याख्याता, राज्य स्तरीय शासकीय योग प्रशिक्षण केंद्र भोपाल ), बी.के.सरोज दीदी (उपक्षेत्रीय प्रभारी, बीना), बी.के.रेखा (संयोजिका युवा प्रभाग भोपाल ज़ोन सीधी), बी.के. नीलम बहन, सागर (सदस्य युवा प्रभाग ), बी.के. सुनीता होसंगाबाद (सह संयोजिका युवा प्रभाग) उपस्थित रहे |
कार्यक्रम के शुभारम्भ में बी.के.रेखा (सीधी, म.प्र.) ने सभी का स्वागत अभिनन्दन किया एवं युवा प्रभाग के द्वारा चलाये जा रहे प्रोजेक्ट के बारे में बताया
तत्पश्चात बी.के. नीता बहन जी ने योग का महत्व बताते हुए कहा कि आज वर्तमान समय में शारीरिक योग करना तो अति आवश्यक है ही परन्तु उसके साथ साथ मन का स्वस्थ्य होना भी ज़रूरी है तभी कहेंगे योगी जीवन | आज वर्तमान समय में आपसी मन मुटाव, चिंता, भय, तनाव, बीमारियाँ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं तो उसके लिए ज़रूरी है शारीरिक योग के साथ-साथ हम अपने जीवन में ध्यान, योग को भी बढ़ाये तथा उसे अपने जीवन का हिस्सा बनालें |
इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि के रूप में डॉ.संतोष कुमार गुजरे जी ने बताया कि संस्थान के द्वारा जो सुन्दर आयोजन किया उसकी में भूरी-भूरी प्रशंसा करता हूँ, विषय भी बहुत सुन्दर है “युवा और योग” | आज के समय में हम लोगों के पास सब कुछ तो है लेकिन धैर्य और शांति नहीं इसको पाने के लिए युवा लोग और दूसरे लोग भी सुख और शांति की लालसा में भटक रहे हैं | पर योग एक ऐसी परम औषधि है की इसके शरण में आते ही हमको सारी चीज़ें हासिल हो जाती है | कई प्रकार के योग हैं कर्म योग, भक्ति योग, हठ योग आदि-आदि सबका उद्देश्य शांति को पाना ही है | इसी के साथ उन्होंने सभी को योग से जुड़ने के लिए प्रेरित किया और साथ ही उसका महत्व भी बताया |
बी.के. शैलजा बहन जी ने सभी को शारीरिक योग और आध्यात्मिक योग के बीच के अंतर को बहुत ही सुन्दर रीती समझाया| उन्होंने बताया कि शारीरिक योग शारीरिक गतिविधियों के लिए लाभ दायक है वहीं आध्यात्मिक योग आत्मा का परमात्मा के साथ जोड़ या सम्बन्ध है | अपने सर्व सम्बन्ध उस परमात्मा के साथ जोड़ ले और परमात्मा की शक्तियों का अनुभव करें जिससे हम मानसिक रूप से शक्तिशाली तो हो ही जायेंगे साथ ही स्वयं को शारीरिक रूप से भी शक्तिशाली अनुभव करने लगेंगे | योग हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है आज 80 प्रतिशत बीमारियों को, चिन्ताओं को या निजी जीवन में आने वाली हर प्रकार की परस्थितियों को आसानी से पार करने में राजयोग हमारी मदद करता है |
बी. के. निर्मला बहन जी ने बताया कि हम सभी को प्रकृति से बहुत स्नेह करना चाहिए क्योकि सही मायने में प्रकृति के बिना ये जीवन चल ही नहीं सकता जैसे की आज हम देखते हैं की सभी मनुष्यों के मन इतने दूषित हो गए हैं एवं सभी के संकल्प समर्थ से व्यर्थ में परिवर्तन हो गए हैं और वही प्रकम्पन पूरे वातावरण में फ़ैल कर उसको भी दूषित बना रहे हैं, पर्यावरण हमारे मन के आधार से ही परिवर्तन होता है और मन को शुद्ध शक्तिशाली तभी बना सकते हैं जब हम अपना कनेक्शन उस पिता परमात्मा के साथ जोड़ लेंगे | योग के लिए चार बातों का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है –
1-स्वयं के साथ साथ उस परमपिता का परिचय |
2- परमात्मा में निश्चय |
3- आत्मा का उस परमात्मा के साथ सम्बन्ध |
4- पिता परमात्मा से मुझ आत्मा को प्राप्ति |
जिस प्रकार हमारे जीवन में भोजन ज़रूरी है उसी प्रकार योग करने के लिए ये चार बातें ध्यान में रखना भी ज़रूरी है, तो अधिक से अधिक समय निकालकर उस परमात्मा को याद करें तो हर कार्य में सफलता अवश्य मिल जाएगी |
इसी क्रम में विशिष्ठ अतिथि श्रीमती मीना शर्मा जी ने सभी को संबोधित करते हुए बताया कि युवा सभी विषय में बहुत तीव्र गति से आगे चल रहे हैं परन्तु योग के विषय में आज भी बहुत पीछे हैं तो वर्तमान समय में अगर सभी को अपने जीवन के हर कदम में सफलता तथा एक स्वस्थ जीवन चाहिए तो उसके लिए ज़रूरी है स्वयं को एकाग्र करना और वह तभी हो सकेगा जब योग और अध्यात्म को अपने जीवन का एक हिस्सा बना लेंगे | अगर हम सभी शारीरिक योग के साथ साथ अपने मन को ईश्वर में लगायें तो स्वयं को अनेक बीमारियों से भी बचा सकते हैं क्योकि आज सभी को ज़्यादातर बीमारियाँ तनाव के कारण हो रही हैं इसलिए प्रतिदिन योग करने से हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं तथा उसका सही रीती से आनंद ले सकते हैं|
बी. के. रेखा बहन जी (मुरैना) ने बताया की योग जीवन की एक कला है | राजयोग करने से हमारे जीवन मे आने वाली परिस्थियों में हम घबराते नहीं हैं, यह हमारा आत्मविश्वास बढ़ाने में भी मदद करता है| यह स्वयं को अपने अनादी स्वरुप में स्थित करने की एक सुन्दर कला है | राजयोग से हमारे जीवन में बहुत सारे फायदे हैं जो हम सभी अपने व्यावहारिक जीवन में भी अनुभव कर सकते हैं |
बी.के. सरोज बहन जी ने सभी को बताया की राजयोग मैडिटेशन करने से हम अपने जीवन में ख़ुशी का, सुख-शांति का अनुभव करने लग जाते हैं तथा शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिशाली बन जाते हैं साथ ही किसी भी परिस्थिथि में घबराने के बजाये उसका ख़ुशी ख़ुशी सामना करते है | लेकिन उसके लिए हमें परमात्मा के साथ सर्व सम्बन्ध जोड़ कर उसे प्यार से याद करना अतिआवश्यक है |
बी.के. पंचशिला बहन जी ने बताया की युवा जीवन में योग का बहुत महत्व है, युवा अपने जीवन में योग का प्रयोग करें तो स्वयं के जीवन को परिवर्तन कर सकते है और दूसरो को स्वयं के जीवन से प्रेरित कर सकते हैं, जैसे की कहते हैं “पहला सुख निरोगी काया” | इसी के साथ दीदीजी ने सभी को राजयोग मैडिटेशन का अभ्यास करवाया |
कार्यक्रम के अंत में बी. के.सुनीता बहन ने सभी अतिथियों का और वेबिनार में उपस्थित युवाओं का आभार व्यक्त किया |
कार्यक्रम का कुशल संचालन बी. के. नीलम बहन के द्वारा किया गया |
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मालनपुर ग्वालियर – ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन

ब्रह्माकुमारीज़ के युवा प्रभाग द्वारा आयोजित डिवाइन यूथ फोरम तीन दिवसीय रिट्रीट सम्पन
तीन दिवसीय रिट्रीट में प्रदेश भर से आई युवा बहनों ने सीखे व्यक्तितव विकास गुर
दुआएं लेना और दुआएं देना अर्थात जीवन को सुंदर बनाना – अनुसूईया दीदी
ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान में आना अर्थात आनंद की अनुभूति करना -आशीष प्रताप सिंह
बिना कहे जब हम काम करते हैं तो दुआएं मिलती हैं – रेखा दीदी
ग्वालियर। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय की भगिनी संस्था राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउंडेशन के युवा प्रभाग द्वारा नई उमंग नई तरंग के अंतर्गत गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर में तीन दिवसीय आवासीय रिट्रीट डिवाइन यूथ फोरम का आयोजन किया गया था। जिसमे पूरे प्रदेश से युवा बहनों ने हिस्सा लिया। इस रिट्रीट का उद्देश्य व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देना था।
आज कार्यक्रम के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़, दिल्ली से पधारी बीके अनुसूईया दीदी, बीके वर्णिका दीदी, सीधी से रेखा दीदी, ग्वालियर गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर प्रमुख बीके ज्योति बहन, युवा प्रभाग के राष्ट्रीय सदस्य बीके प्रहलाद भाई, बीके जानकी आदि उपस्थित थीं।
कार्यक्रम के शुभारंभ ने दिल्ली से आई बीके अनुसूईया दीदी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दुवाओं के वारे में सभी को बताया और कहा कि दुआएं यह कोई खरीदी-बेची जाने वाली वस्तु नहीं, बल्कि हमारे कर्मों की खामोश कमाई होती हैं। जब हम निस्वार्थ भाव से, श्रद्धा और सेवा-भाव से कार्य करते हैं, तो दुआएं स्वतः ही हमारे खाते में जमा होती जाती हैं।
दुआएं कमाने का मार्ग कर्म से होकर जाता है। जब हम अपने कर्मों से अपने बड़ों, गुरुजनों और समाज को निश्चिंत करते हैं। जब हम बिना कहे उनके सुख-दुख में साथ खड़े होते हैं, तो वह आशीर्वाद नहीं, बल्कि दिल से दुआएं भी देते हैं। यह दुआएं हमारी रक्षा करती हैं, मार्ग प्रशस्त करती हैं, और जीवन को सार्थक बनाती हैं।
दीदी ने आगे कहा कि हम जिनको लोगो के साथ रहते है या जहां कार्य करते है। या फिर कोई सेवा का कार्य करते है। वह हमें अपना समझ करके और बिना कहे करना चाहिए यह सबसे ऊँचा कर्म है। जो काम किसी ने कहा नहीं, पर हमने देख लिया और कर दिया। वही असली सेवा है। सेवा में दिखावा नहीं, समर्पण होना चाहिए। जब हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर दूसरों के लिए कार्य करते हैं, तो हमें दुआओं की पूंजी मिलती है। हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि “यह मेरा काम नहीं है।” कर्म का धर्म यही कहता है कि जहां ज़रूरत हो, वहां सहयोग दिया जाए। यही सहयोग एक दिन हमारी ज़रूरत के समय कई गुना होकर लौटता है।
यूथ विंग की भोपाल ज़ोन की संयोजिका बीके रेखा बहन ने कहा कि जितनी ज़रूरत हो, उतना ही लेना सीखें। आज की दुनिया में लालच हर किसी को खींचता है, पर संतोष और संयम ही वह गुण है जो दूसरों के हिस्से की चीज़ें भी उन्हें लौटाकर हमें दुआएं दिलवाता है। सीमित संसाधनों में संतुलन बनाना, यही सच्चे संस्कारों का परिचायक है।
कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य आशीष प्रताप सिंह राठौड़ ने बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समष्टि के प्रति एकात्मता, सर्वभूत हितेरेता:
एवं सर्वे भवंतु सुखिनः जैसे उच्च स्तरीय मूल्यों के उपासक होने पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के भाइयों बहनों ने हम सब को गौरवान्वित किया हैं। हमारे जो गुरुजन होते हैं उनकी शिक्षा से ही हमारा विकास होता हैं
जिस प्रकार हमारा देश आगे बढ़ रहा हैं। और आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बड़ी हैं।
मैं पिछले कुछ वर्षो से ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुड़ा हुआ हूँ। और मुझे यहां आकर के आनंद की अनुभूति होती हैं।
आज की पीढ़ी अपने नेचर को भूलती जा रही हैं
यह संस्था सभी लोगों को नेचर और सांस्कृतिक से जोड़ती हैं।
कार्यक्रम में दिल्ली से आई बीके वर्णिका बहन ने कहा कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की भावना ही दुआओं की कुंजी है। जब हम केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सभी के भले की कामना करते हैं, उनके लिए कुछ करते हैं, तो संपूर्ण सृष्टि से हमें सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
बचपन से ही हमें ऐसे मूल्य और सोच अपनाने चाहिए कि जहाँ भी हम जाएँ, वहाँ शांति, सहयोग, और करुणा का संचार हो। यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी कमाई है। दुआएं सिर्फ शब्दों से नहीं, व्यवहार से दी जाती हैं। प्रेरणा देकर, मार्गदर्शन देकर।
गोल्डन वर्ल्ड रिट्रीट सेंटर की प्रभारी बीके ज्योति दीदी ने भी अपनी शुभकामनाएं दीं और कहा कि जिस दिन हमारे अंदर संतोष धन आ जाता हैं फिर बाहर का कोई भी आकर्षण महसूस नहीं होता हैं।
अपने लिए जिए तो क्या जिए, जीवन में दूसरों का भला ही असली जीवन है।
कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके प्रहलाद भाई ने किया तथा सभी का आभार बीना से पधारी बीके जानकी दीदी ने किया।
इस अवसर पर नीलम बहन, रेखा बहन, खुशबू बहन, महेश भाई, आशीष भाई, मीरा बहन, अर्चना बहन, सपना बहन सहित अनेकानेक बहने उपस्थित थीं
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न्यूज़ कवरेज – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है
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मालनपुर ग्वालियर – जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है

जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है – बीके वर्णिका बहन
यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा – बी के अनुसुईया दीदी
ग्वालियर: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के माधवगंज स्थित प्रभु उपहार भवन में दिल्ली से आई बीके अनुसुईया दीदी एवं वर्णिका बहन का स्वागत अभिनन्दन किया गया।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज़ लश्कर केंद्र प्रमुख बीके आदर्श दीदी ने शब्दों से एवं पुष्पगुच्छों से पधारे हुए अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन किया। और कहा कि मानव जीवन बहुत ही अनमोल हैं इसकी हमें हमेशा वैल्यू करनी चाहिए। और हमेशा श्रेष्ठ कर्म ही करना चाहिए। आज हमारे बीच अनुसुईया दीदी पहुंची है जो कि पिछले 60 वर्षों एवं वर्णिका बहन पिछले 11 वर्षों से ब्रह्माकुमारीज संस्थान में प्रेरक वक्ता एवं राजयोग ध्यान प्रशिक्षका के रूप में समर्पित होकर अपनी सेवाएँ दें रही है। और आपके माध्यम से हजारों, लाखों लोगो को श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिल रही है। यह बहुत ही खुशी कोई बात है कि आप आगमन ग्वालियर हुआ है। निश्चित ही यहाँ के लोगो को आपके प्रेरक उद्बोधन का लाभ मिलेगा।
कार्यक्रम में बी.के. वर्णिका बहन ने कहा कि हर व्यक्ति का जीवन अलग होता है, उसके अनुभव, उसके संस्कार, उसकी सोच और उसकी चाहतें भी भिन्न होती हैं। कोई सफलता को सबसे बड़ा लक्ष्य मानता है, तो कोई संतोष को ही जीवन का सार समझता है। लेकिन जब हम गहराई से सोचते हैं, तो समझ आता है कि जीवन की असली पूँजी दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि खुशी, संतुष्टि और शांति है। ये खजाने बाजारों में नहीं मिलते, ये न किसी चीज़ से खरीदे जा सकते हैं और न ही किसी को देकर लिए जा सकते हैं। ये खजाने परमात्मा के पास हैं, और उनका अनुभव तभी होता है जब इंसान स्वयं से जुड़ता है, अपने भीतर झाँकता है। जिंदगी शुरू होती है एक छोटे से मासूम सपने से – पढ़ाई पूरी हो जाए, अच्छे नंबर आ जाएँ। फिर उस सपने में एक और सपना जुड़ जाता है – नौकरी लग जाए, भविष्य सुरक्षित हो जाए। नौकरी मिलती है तो एक और चाह जागती है – अच्छा घर हो, गाड़ी हो, जीवनसाथी हो। फिर एक परिवार बसता है, बच्चे होते हैं, उनके सपनों को पूरा करने की दौड़ शुरू होती है। एक के पीछे एक लक्ष्य आता जाता है, और इंसान उन्हें पूरा करने की कोशिश में पूरी जिंदगी गुजार देता है। लेकिन इन सबके बीच वह भूल जाता है कि वह भाग किसके लिए रहा है, किस मंज़िल की तलाश में है। हर सफलता के बाद एक नई कमी महसूस होती है। हर उपलब्धि के साथ एक नया खालीपन जन्म लेता है। और जब उम्र ढलने लगती है, तब जाकर कहीं दिल से एक धीमी आवाज़ उठती है – अब कुछ नहीं चाहिए, बस थोड़ा सा सुकून चाहिए, थोड़ा सा प्यार चाहिए, थोड़ी सी शांति मिल जाए। यही वह क्षण होता है जब इंसान को समझ आता है कि असली खजाना बाहर नहीं, भीतर है। जो बात शुरुआत में समझ में नहीं आती, वह अंत में साफ हो जाती है – कि जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है आत्मिक संतुलन। जब हम खुद से कट जाते हैं, तो सारी दुनिया मिलने पर भी अधूरे रहते हैं। लेकिन जब हम खुद से जुड़ जाते हैं, जब हम परमात्मा के प्रति समर्पण भाव रखकर जीवन को जीते हैं, तब वह खजाना स्वयं हमारे भीतर प्रकट होता है। शांति कोई चीज़ नहीं, यह एक अनुभव है। प्रेम कोई लेन-देन नहीं, यह एक भावना है। संतुष्टि कोई लक्ष्य नहीं, यह जीवन का भाव है। और जब तक हम इन अनुभवों को नहीं जीते, तब तक चाहे हम कुछ भी पा लें, वह अधूरा ही रहता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने जीवन की रफ्तार को थोड़ा धीमा करें, अपने भीतर झाँकें, उस मौन को सुनें जो हर पल हमें आवाज़ दे रहा है। तभी हमें जीवन का असली खजाना मिलेगा – वह खजाना जो नष्ट नहीं होता, जो सदा हमारे साथ रहता है – परमात्मा की कृपा में बसी हुई शांति, प्रेम और संतोष।
कार्यक्रम में अनुसुईया दीदी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य केवल शरीर नहीं है, बल्कि एक चेतन्य शक्ति आत्मा है। यह आत्मा ही शरीर के माध्यम से सभी कर्म करती है। हमारे हर अच्छे या बुरे कर्म का मूल स्रोत हमारी आत्मा ही होती है। शरीर तो एक माध्यम है। जब आत्मा शुद्ध होती है, तो उसके विचार, वाणी और कर्म भी शुद्ध होते हैं। यदि सच्ची कमाई करनी है तो हमें अपनी वाणी को मधुर और प्रेमपूर्ण बनाना होगा। जब हम प्रेम से, शांति से और आदरपूर्वक बोलते हैं तो हमारे शब्द केवल शब्द नहीं रहते, वे दुआएँ बन जाते हैं। इन दुआओं का कोई मूल्य नहीं लगा सकता, क्योंकि ये आत्मा को ऊँचा उठाती हैं, कर्मों को हल्का बनाती हैं और जीवन में सच्ची सुख-शांति का आधार बनती हैं।
जब हम किसी के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, मीठे बोल बोलते हैं, सहायता करते हैं, शुभ सोचते हैं और सद्विचारों को सुनते हैं, तो यह सब आत्मा के भीतर जमा होता जाता है। यह जमा पूँजी ऐसी है जिसे कोई देखे या न देखे, कोई जाने या न जाने, पर आत्मा जानती है कि कुछ अच्छा संचित हुआ है। कभी-कभी हम दिन भर अच्छा व्यवहार करते हैं, सभी से प्रेम से बोलते हैं, और फिर भी कोई हमारी सराहना नहीं करता। पड़ोसियों को पता नहीं चलता, परिवार के लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और हम भीतर ही भीतर दुःखी हो जाते हैं। हमें लगता है कि हमारी अच्छाई का कोई मूल्य ही नहीं रहा, कोई उसे समझ नहीं रहा। पर यहाँ हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की किस्मत उसके कर्मों से बनती है। मेरे कर्म मेरी किस्मत बनाते हैं और किसी और के कर्म उसकी किस्मत तय करते हैं। अगर कोई मेरी अच्छाई को नहीं मानता, मेरी बात को नहीं समझता, मेरी सेवा का आदर नहीं करता, तो मुझे दुःखी नहीं होना चाहिए। अगर मैं अच्छा करते हुए भी दुःखी हूँ, तो यह मेरी समझ की कमी है। क्योंकि बुरा कर्म करने वाला तो दुःखी रहता ही है, लेकिन जो अच्छा कर्म करके भी दुःखी हो जाए, वह तो और भी बड़ी भूल कर रहा है। परमात्मा सब देखते है। हम उनके बच्चे हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, प्रेम से बोलते हैं, शांति से जीते हैं, सेवा में रहते हैं, तो परमात्मा की कृपा हमारे साथ होती है। इसलिए किसी के न मानने या सराहने न करने से हमें हताश नहीं होना चाहिए। हमारा हर अच्छा कर्म, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, कहीं न कहीं आत्मा में दर्ज हो रहा है। यही हमारे जीवन की असली पूँजी है।
अतः हमें सदा यही याद रखना चाहिए कि कोई देखे या न देखे, कोई माने या न माने, लेकिन यदि हम सही मार्ग पर चल रहे हैं, प्रेम और सेवा के भाव में जी रहे हैं, तो हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। क्योंकि अंततः आत्मा को शांति उसके अपने कर्मों से ही मिलती है, और परमात्मा की दृष्टि से कोई भी अच्छा कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता।
कार्यक्रम का कुशल संचालन बीके ज्योति बहन (मोहना) ने किया तथा आभार बीके प्रहलाद भाई ने किया।
इस अवसर पर बीके जीतू, बीके पवन, बीके सुरभि, बीके रोशनी, सुरेन्द्र, विजेंद्र, पंकज, पीयूस, रवि, गजेन्द्र अरोरा, डॉ स्वेता माहेश्वरी सहित अनेकानेक लोग उपस्थित थे।
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